William
Shakespeare के शब्दों में कहें तो जीवन रंगमंच है जिस पर हम सभी अपना अभिनय कर रहे हैं
और बुद्ध के शब्दों में कहें तो एक कहानी के रूप में वह कहते हैं एक बार एक युवक के सिने में तीर लग गया अगल बगल से लोग दौड़े कि इसे बचा लिया
जाए मगर युवक ने सवाल किया तीर निकालने से पहले मैं यह जानना चाहता हूं कि -
1. तीर किसने चलाया ?
2. तीर उसने क्यों चलाया ?
3. क्या तीर अनायास ही मुझे
लगा या जानबूझकर मुझे मारा गया ?
लोगों ने यह सवाल सुनकर उसे
कहा पहले अपना जीवन तो बचा लो तीर अगर नहीं निकाला गया तो तुम मर जाओगे मगर यह युवक नहीं माना यह पूछता
रहा और मर गया यही परिस्थिति इस सवाल की भी है बुद्ध कहते हैं जीवन तुम्हारे
हाथ में है और तुम पूछ रहे हो जीवन क्या है
एक ex -के अनुसार आपके हाथ में मोबाइल है तो क्या आप पूछते हैं । मोबाइल क्या है? आप उसका प्रयोग करते हैं । उससे फोन करते हैं ,उससे मैसेज करते हैं,उससे वीडियो कॉल करते हैं, आप उसमें app use करते हैं मगर आप mobile
side में रख दें और खुद से यह पूछते रहें कि mobile क्या है और यही पूछते-पूछते एक दिन mobile खराब हो जाता है और फिर आप
एक mobile खरीदते हैं और उसको भी side मे रख कर सवाल करते हैं कि mobile क्या है ?तो आप कभी जान पाएंगे । क्या
mobile है ? मगर इसके बदले आप फोन उठाएं और उसका प्रयोग करें तो जरूर जान जाएगे की mobile क्या
है ।
दोनों में से कौन सी विधि
सही है? यही ना कि mobile का प्रयोग करें और आप
भली-भांति समझ जाएंगे कि mobile क्या है ?उसकी क्या खराबी है? उसकी अच्छाई क्या है? आदि
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